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व्यथा
हम भी हैं इस धरा के, जरा दृष्टि घुमाइए |
हमारी भी व्यथा को, जरा दिल से लगाइए |
आपकी सरकार है तो, एक उम्मीद सी जगी है |
हमारी भी उम्मीद को, जरा सचकर दिखाइए |
हमारी भी व्यथा ...................................
करुण क्रंदन कर रहा है, पुस्तकालय समाज आज |
महंगाई और बेरोजगारी की, गिर रही है गाज |
लड़खड़ाते हुए कदम, कही टूट न जाए |
हम संभल सकें, ऐसी व्यवस्था बनाइयें |
हमारी भी व्यथा ...................................................
शिक्षा का आधारस्तंभ, कहीं टूट न जाए |
मानवता मनुष्य की, कहीं रूठ न जाए |
नींव रखकर मजबूत, मानवता बचाइए |
मंजिल हो जाये आसान, ऐसा पथ दिखाइए |
हमारी भी व्यथा ................................................
हमको भी गरिमा मिले, और ग्रन्थ को ग्रंथालय I
हम भी छू लें गगन को, जैसे चोटी हिमालय I
कर थोडा प्रयास, स्वप्न हमारा साकार बनाइयें I
जल्द से जल्द, उ.प्र. पुस्तकालय अधिनियम लागू कराइए I
हमारी भी व्यथा ...............................................
मनीष कुमार मिश्र
पुस्तकालय सहायक
बीबीएयू ,लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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