पुस्तकालय में कार्य करते लगभग १७ साल हो गए है, अनुभव भी अच्छा है इस समय एक महाविद्धालय में कार्यरत हूँ ,ख़ास कर हमें यह देखने को मिला कि, जो महगी किताबे होती है ,उनको रेफरेंस बना के रख देते जो की बिद्धार्थी जब किताब लेने के लिए आते है तो उन्हें यह कह दिया जाता है . की जा करके डायरेक्टर से हस्ताक्षर करवा के लाईय तभी किताब एक दिन के लिए मिल पाएगी ,अब विद्धार्थी डायरेक्टर के पास जाता है ,,लेकिन डायरेक्टर साहब बिजी रहते है ,विद्धार्थी समय का अभाव देख कर के वापस आ जाता है और किताब लेने की ख्वाहिश वही पर विराम ले लेती है ,जिससे विद्धाध्यन में विध्न उत्त्पन्न होता है ,, पहली बात तो यह है की अगर विद्धार्थी य अन्य अध्यापक को भी रेफरेंस की किताब चाहिए तो वह डायरेक्टर से हस्ताक्षर न करा के अपने अच् .ओ .डी से करा ले ..जिससे पुस्तकालय में किताब समय के अनुसार मिल जाय/रही बात महगी किताबो की तो महगी किताबो को भी एक ही रेफरेंस होनी चाहिए ..अपने कर्तव्य से विमुख होना अनुशासन की अवज्ञा करना माना जाता है